वतन की ख़ातिर
वतन की ख़ातिर
पग में लगे जो ठोकर, आहें कभी न भरना।
बेगैरतों की कृत्यों को,होते कभी न सहना,
होगी बड़ी तौहीनी,इस मादरे वतन की-
दुश्मन के सामने,मस्तक का तेरे झुकना।।
फ़र्ज़ अपनी माटी का,तुम भूलना नहीं,
संबंध दीप-बाती का,तुम तोड़ना नहीं।
तुम ही गुरूरे मुल्क़,शाने वतन तुम्ही हो-
होती है फ़ख़ की बात,माटी की ख़ातिर मिटना।।
दुश्मन के सामने................।।
होते अमन-पसंद न कुछ,सियासत के चाटुकार,
है असभ्य उनकी भाषा,नापाक हैं विचार।
वे चाहते हैं टुकड़े-टुकड़े वतन का करना-
ऐसे ही सिरफिरों से,बच के ज़रा ही रहना।।
दुश्मन के सामने................।।
हम रह के क्या करेंगे,यदि देश न रहेगा?
जब लुट गई हो अस्मत,तो कुछ नहीं बचेगा।
है वक़्त का तकाज़ा,मुट्ठी में इसको कर लो-
सबसे है पाक़ मज़हब,सेवा वतन की करना।।
दुश्मन के सामने................।।
चाहे रहें न हम सब,प्यारा वतन रहेगा,
बावास्त-ए-वतन ही,सबका लहू बहेगा।
होगा सफल ये जीवन,तेरा तभी ऐ मित्रों-
समझोगे जब वतन की,माटी को अपना गहना।।
दुश्मन के सामने..............।।
उत्तर हो चाहे दक्खिन,पूरब हो चाहे पश्चिम,
हैं हमवतन सभी जन,कोई तेज हो या मद्धिम।
सब एक सुर में कहते,सब कुछ वतन हमारा-
अम्ने वतन की ख़ातिर, जीना हमारा मरना।।
दुश्मन के सामने..............।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Abhinav ji
11-Nov-2023 08:23 AM
Very nice
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